मगहर से सतलोक हिन्दू व मुसलमान में जो भाईचारे, धार्मिक सामंजस्य का बीज परमेश्वर कबीर जी बो गए थे, उसकी मिसाल मगहर में आज भी देखी जा सकती है। मगहर से परमेश्वर कबीर जी सशरीर सतलोक गए थे। उस स्थान पर हिन्दू व मुसलमानों ने मंदिर व मजार 100 - 100 फुट की दूरी में यादगार बना रखी है। #1Feb_GodKabir_NirvanaDiwas मगहर से सतलोक
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Showing posts from January, 2023
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Who is the Father of Goddess Durga? Now the question arises when both Kshar Purush / Kaal and Durga are in form and live together as husband-wife having material bodies How are both of them born? Who is their father? Do they have Children? In Kabir Sagar, creation of the universe, the origin of Kshar Purush / Kaal and Durga is explained. The Almighty God KavirDev / Kabir (who is the creator of the entire universe) with his word power created this Kshar Purush from an egg and later Durga was born by the word power of Supreme God Kabir / KavirDev. So the father of Durga is none other than Almighty KavirDev .
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Who is the Husband of Goddess Durga? Durga Ji wears sindoor; according to Hindu tradition sindoor is worn by a married female; it is symbolic of female being ‘suhagan’. It is the religious practice amongst Hindu devotees to offer ‘suhag’ to goddess Durga during worship but the reality is quite a large number of devotees do not know who is the husband of Durga? Shrimad Devi Bhagavata Purana, Third Skand, Page 114-118 It is mentioned ‘Many consider the Acharya Bhavani to be the fulfiller of all wishes. She is known as Prakriti and has an inseparable relationship with Brahm’. Addressing Durga as Bhavani the above verse mentions that Kaal is her (Durga's) husband who is addressed as Param Purush. Both of them live together and have an inseparable relation. Shrimad Devi Bhagavata Purana, Third Skand, Page 11-12, Adhyay 5, Shlok 12 Ramayse swapatiM purushM sada tav gatiM na hi vih vid am shive (12) ‘You (Durga) are always procreating (reproduction by copulation) with your husband pur
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सुख सागर की संक्षिप्त परिभाषा | जीने की राह सुख सागर अर्थात् अमर परमात्मा तथा उसकी राजधानी अमर लोक की संक्षिप्त परिभाषा बताई है:- शंखों लहर मेहर की ऊपजैं, कहर नहीं जहाँ कोई। दास गरीब अचल अविनाशी, सुख का सागर सोई।। भावार्थ: - जिस समय मैं (लेखक) अकेला होता हूँ, तो कभी-कभी ऐसी हिलोर अंदर से उठती है, उस समय सब अपने-से लगते हैं। चाहे किसी ने मुझे कितना ही कष्ट दे रखा हो, उसके प्रति द्वेष भावना नहीं रहती। सब पर दया भाव बन जाता है। यह स्थिति कुछ मिनट ही रहती है। उसको मेहर की लहर कहा है। सतलोक अर्थात् सनातन परम धाम में जाने के पश्चात् प्रत्येक प्राणी को इतना आनन्द आता है। वहाँ पर ऐसी असँख्यों लहरें आत्मा में उठती रहती हैं। जब वह लहर मेरी आत्मा से हट जाती है तो वही दुःखमय स्थिति प्रारम्भ हो जाती है। उसने ऐसा क्यों कहा?, वह व्यक्ति अच्छा नहीं है, वो हानि हो गई, यह हो गया, वह हो गया। यह कहर (दुःख) की लहर कही जाती है। उस सतलोक में असँख्य लहर मेहर (दया) की उठती हैं, वहाँ कोई कहर (भयँकर दुःख) नहीं है। वैसे तो सतलोक में कोई दुःख नहीं है। कहर का अर्थ भयँकर कष्ट होता है। जैसे एक गाँव में आपसी रंजिश क
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भगवान शिव का अपनी पत्नी को त्यागना | जीने की राह जिस समय श्री रामचन्द्र पुत्र श्री दशरथ (राजा अयोध्या) बनवास का समय बिता रहे थे। उस दौरान सीता जी का अपहरण लंका के राजा रावण ने कर लिया था। श्री राम को पता नहीं था। सीता जी के वियोग में श्री राम जी विलाप कर रहे थे। आकाश से शिव-पार्वती ने देखा। पार्वती ने शिव से पूछा कि यह व्यक्ति इतनी बुरी तरह क्यों रो रहा है? इस पर क्या विपत्ति आई है? श्री शिव जी ने बताया कि यह साधारण व्यक्ति नहीं है। यह श्री विष्णु जी हैं जो राजा दशरथ के घर जन्में हैं। अब बनवास का समय बिता रहे हैं। इनकी पत्नी सीता भी इनके साथ आई थी, उसका किसी ने अपहरण कर लिया है। इसलिए दुःखी है। पार्वती जी ने कहा कि मैं सीता रूप धारण करके इनके सामने जाऊँगी। यदि मुझे पहचान लेंगे तो मैं मानूंगी कि ये वास्तव में भगवान हैं। शिव जी ने पार्वती से कहा था कि यह गलती ना करना। यदि आपने सीता रूप धारण कर लिया तो मेरे काम की नहीं रहोगी। पार्वती जी ने उस समय तो कह दिया कि ठीक है, मैं परीक्षा नहीं लूंगी। परंतु शिव के घर से बाहर जाते ही सीता रूप धारकर श्री राम के सामने खड़ी हो गई। श्री राम बोले कि हे
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1. मानव जीवन की आम धारणा | जीने की राह जब तक यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान नहीं होता तो जन-साधारण की धारणा होती है कि:- 1) बड़ा होकर पढ़-लिखकर अपने निर्वाह की खोज करके विवाह कराकर परिवार पोषण करेंगे। बच्चों को उच्च शिक्षा तक पढ़ाऐंगे। फिर उनको रोजगार मिल जाए। उनका विवाह करेंगे। परमात्मा संतान को संतान दे। फिर हमारा कर्तव्य पूरा हुआ। कई बार गाँव या गवांड (पड़ौसी गाँव) के वृद्ध इकट्ठे होते तो आपस में कुशल-मंगल जानते तो एक ने कहा कि परमात्मा की कृपा से दो लड़के तथा दो लड़की हैं। कठिन परिश्रम करके पाला-पोसा तथा पढ़ाया, विवाह कर दिया। सब के सब बेटा-बेटियों वाले हैं। मेरा कार्य पूर्ण हुआ। 75 वर्ष का हो गया हूँ। अब बेशक मौत हो जाए, मेरा जीवन सफल हुआ। वंश बेल चल पड़ी, संसार में नाम रहेगा। विवेचन: - उपरोक्त प्रसंग में जो भी प्राप्त हुआ, वह पूर्व निर्धारित संस्कार ही प्राप्त हुआ, नया कुछ नहीं मिला। एक व्यक्ति का विवाह हुआ। संतान रूप में बेटी हुई। मानव समाज की धारणा रही है कि पुत्र नहीं है तो उसका वंश नहीं चलता। (परंतु आध्यात्मिक ज्ञान की दृष्टि से पुत्र-पुत्री में कोई अंतर नहीं माना जाता) आशा लगी कि दूसरा प
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Let's know: Why do humans do so much devotion, yet remain unhappy? This is how it happens that if a person is dependent on the virtues of his previous births, then if a person does not perform any duty or worship And someone has committed more sins: then he gets happiness or sorrow in the present life on the basis of the sins or virtues he did in the previous birth. So on the basis of the ratio of sins or virtues of the previous birth of any human being in human birth, happiness or sorrow is found in the present.
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Identification of a True Saint or Satguru in the World In this world, there is a flood of religious gurus. It is said ‘Neem Hakeem Khatra e Jaan’ (नीम हकीम खतरे जान), means a little knowledge is a dangerous thing. Anyone who reads holy scriptures and becomes a bit knowledgeable in the path of devotion starts claiming himself to be a religious guru and portrays that he is close to God, is familiar with the divine and starts preaching. But the most difficult question remains unanswered for the devotees; who is the real and true satguru? The fact remains that a Satguru is not easy to find, and not everyone can be a Satguru, a true religious teacher, a true saint. All disciples claim their religious gurus to be Satguru but how to decide who is a Satguru? This ambiguity and confusion will be explained in detail in this write-up which will be based on the shreds of evidence from all the holy scriptures. We hope that after reading this article all devotees will themselves be able to judge; W
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Who is the Master of Lineage (कुल का मालिक) (Supreme God) and What Does He Look Like Whichever pious souls attained God, they told that the Master of the lineage is One. He has a human-like visible body consisting of light. The light of whose one hair follicle is more than the combined light of crore suns and crore moons. He only has acquired various forms. The real name of God in different native languages is KavirDev (in Sanskrit language in the Vedas), Hakka Kabir (in regional language in Guru Granth Sahib on page no. 721), Sat Kabir (in native language in Shri Dharmdas ji's speech), Bandichhor Kabir (in native language in Sad Granth of Sant Garibdas ji), Kabira, Kabiran and Khabira or Khabiran (in regional Arabic language in Shri Quran Sharif Surat Furqani no. 25, Aayat no. 19, 21, 52, 58, 59). This Supreme God's synonymous names are Anami Purush, Agam Purush, Alakh Purush, SatPurush, Akaal Moorti, Shabd Swaroopi Ram, Purna Brahm, Param Akshar Brahm etc.
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Let us know: ho w precoious is hamun birth: when a hamun being is born with something precious like a mat like a tree ,it cannot be used again and again ,so what has been said in the words of santo : kabir,manushay janm durlabh hai mile n barmbaar ! jaise tarvar se pata tut gire bahur n lgta daar!! in the human goes out of hand once ,then man does not know when and where he will attain it, because once the human body gets touched, it will have to wander in millions of years in eighty-four lac forms of animals, birds and insects and kites etc.
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हम मनुष्य जन्म क्यों लेते है ?अरतार्थ मानव जन्म लेने का मूल उदेशय क्या है ? हम मनुष्य जन्म को इसलिए प्राप्त होते है क्यों की मानव जन्म का सबसे मुख्य उदेश्य मोक्ष्य की प्राप्ति करना होता है अब बात ये आ जाती है की मोक्ष्य होता है क्या तो आइए जानते है मोक्ष्य का मतलब सदा अमरत्व को प्राप्त होना अरतार्थ आत्मा जन्म और मृत से सदा के छुटकारा पाकर आत्माए अपने निज लोक मे चले जाना निज लोक का मतलब आत्मा अपने उसी स्थान चली जाती है जहा वो अपनी मूल स्वरूप मे रहती थी