परम ईश्वर कौन है? - दुर्गा पुराण में प्रमाण?

आइए प्रमाण के आधार पर विश्लेषण करें कि सत्ययुग के महान सन्तों के अनुसार, ब्रह्मा जी, विष्णु जी, शंकर जी, दुर्गा जी और ब्रह्म (काल) में से कौन सर्वोत्तम परमात्मा है जिसकी भक्ति करनी चाहिए।

परम ईश्वर के विषय मे महान सन्तों का ज्ञान
श्रीमद देवी भगवत पुराण, स्कंध 6, अध्याय 10, पृष्ठ 414

श्री व्यास जी जनमेजय द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देते हैं कि सत्ययुग में, ब्राह्मण वेदों के पूर्ण विद्वान थे और भगवती जगदम्बा(दुर्गा) की निरन्तर आराधना करते थे। भगवती का दर्शन करने के लिए उनका मन सदा लालायित रहता था। उनका सारा समय गायत्री के जाप और ध्यान में व्यतीत होता था। मायाबीज का जप करना उनका मुख्य कार्य था। 

यद्यपि, सत्ययुग के महान संतों को "वेदों के ज्ञाता" कहा जाता था, वे दुर्गा जी को सर्वोच्च भगवान मानते थे, यह सिद्ध करता है कि उन्हें सर्वोत्तम परमेश्वर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी क्योंकि दुर्गा जी किसी अन्य भगवान की पूजा करने के लिए कहती है। 

परम ब्रम्ह के विषय मे विष्णु जी का ज्ञान

श्रीमद देवी भागवत पुराण, स्कंध 1, पृष्ठ 28-29 

नरदजी व्यास जी द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं और कहते हैं कि यही प्रश्न मेरे पिता ब्रह्मा जी ने विष्णु जी से पूछा था।

विष्णु जी को समाधि लगाए देख ब्रह्मा जी को बड़ा आश्चर्य हुआ और इसलिए ब्रह्मा जी ने विष्णु जी से पूछा कि आप देवताओं के अध्यक्ष हैं, तो आप क्यों ध्यान/समाधि लगा रहे हैं। ब्रह्मा जी कहते हैं कि मैं आपको "संसार के शासक को" समाधि लगाए देख आश्र्चर्यचकित हूँ। 

विष्णु जी- 'मुझे सब प्रकार से शक्ति के अधीन होकर रहना पड़ता है। उन्हीं भगवती शक्ति का मैं निरन्तर ध्यान किया करता हूँ। ब्रह्मा जी, मेरी जानकारी में, इन भगवती शक्ति से बढ़कर दूसरे कोई देवता नहीं है। 

यह सिद्ध करता है कि ब्रह्मा जी विष्णु जी को परम ब्रह्म मानते हैं, विष्णु जी दुर्गा को सर्वोच्च भगवान मानते हैं।

परम अक्षर ब्रम्ह के विषय मे दुर्गा जी का ज्ञान

श्रीमद देवी भागवत पुराण, स्कंध 7, अध्याय 36, पृष्ठ 562 - 563

श्री देवी जी कहने लगी - पार्वतराज! इस प्रकार योग युक्त होकर मुझ ब्रह्मस्वरूप देवी का ध्यान करें।

दुर्गा जी हिमालयराज को बता रही हैं कि, इस तरह, पुरी दृढ़ता से मेरी पूजा/ध्यान करो।

दुर्गा जी यहां "उस ब्रह्म" अर्थात किसी अन्य भगवान के बारे में संकेत करती है।

उस ब्रम्ह का क्या स्वरूप है यह बतलाया जाता है। जो प्रकाश स्वरूप सबके अत्यंत समीप में स्थित, हृदयरूप गुहा में स्थित होने के कारण 'गुहाचर' नाम से प्रसिद्ध है और महान पद अर्थात परम प्राप्य है।

दुर्गा जी "उस ब्रह्म (काल)" का भावपूर्ण विवरण देती है! 

सोम्य! उस वेदेने योग्य लक्षय का तुम वेदेन करो - मन लगाकर उसमें तन्मय हो जाओ।

सोम्य! उपनिषद में ..उस बाण को  खींच कर उस अक्षर रूप ब्रह्म को ही लक्ष्य बना कर वेधन करो। प्रणव (ॐ) धनुष है, जीवात्मा बाण है और ब्रह्म को उसका लक्ष्य कहा जाता है।

दुर्गा जी ने "उस ब्रह्म" की भक्ति करने के लिए कहती है और खुद की नहीं, मतलब दुर्गा पुराण में देवी दुर्गा अपनी पूजा का खण्डन करती है।

उस एकमात्र परमात्मा को ही जानो, दूसरी सब बातें छोड़ दे।यही अमृतस्वरुप परमत्मा के पास पाहंचने वाला पुल है। संसार समुद्र से पार होकर अमृतस्वरूप परमात्मा को प्राप्त करने का सुलभ साधन है..... 
इस आत्मा का 'ओम' के जप के साथ ध्यान करो। इससे अज्ञानमय  अंधकार से सर्वथा परे और संसार-समुद्र से उस पार जो ब्रह्म है, उसको पा जाओगे। तुम्हारा कल्याण हो।

देवी जी हिमालयराज को कहती है कि केवल 'एक परमात्मा' की पूजा करें और बाकी सब छोड़ दें और किसी अन्य भगवान की भक्ति करने के लिए कह रही हैं।

देवी जी ने निम्नलिखित पंक्तियों में कहती हैं कि ब्रह्म 'ब्रह्मलोक' में रहता है।

वह यह सबका आत्मा ब्रह्म, ब्रह्मलोक रूप दिव्य अकाश में स्थित है।

गीता अध्याय 8, श्लोक 16 यह लिखा है कि यहां तक कि 'ब्रह्मलोक भी नाशवान है जिसका अर्थ है कि ब्रह्म भी परम ईश्वर नहीं है। यह सिद्ध करता है कि दुर्गा जी को भी परम अक्षर ब्रम्ह के विषय में पूर्ण ज्ञान नहीं है।

परम पुरुष के विषय में ब्रह्म-काल का ज्ञान

गीता जी अध्याय 7 श्लोक 18 में ब्रह्म-काल अपनी भक्ति को 'अनुत्तम' (हीन/घटिया) बताता है।

अध्याय 15 श्लोक 4 और अध्याय 18, श्लोक 62, यह ब्रह्म अर्जुन को परम शांति और शाश्वत स्थान (सतलोक) को प्राप्त करने के लिए परम पुरुष/परमात्मा की शरण में जाने के लिए कह रहा है।

यह प्रमाण संकेत करते हैं कि न तो सतयुग के सन्त, ब्रम्हा जी, विष्णु जी, शिव जी, दुर्गा और न ही ब्रम्ह-काल को पता कि परम पुरुष परमेश्वर कौन है?

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