दुर्गा माँ की सन्तान कौन हैं?
देवी दुर्गा को 'मा' के रूप में संबोधित किया जाता है। उन्हें 'जगतजन-नी/त्रिदेवजन-नी' कहा जाता है। यहां हम समझेंगे: -
- त्रिदेव कौन हैं?
- देवी ने स्वयं में से 'महा-सरस्वती, महा-लक्ष्मी और महा-काली को क्यों बनाया?
संदर्भ: कबीर सागर
ब्रह्म (काल) ने दुर्गा से विवाह किया और उनकी पति-पत्नी की जोड़ी ने तीन पुत्रों को जन्म दिया ब्रह्मा जी- रजोगुण युक्त, विष्णु जी- सतोगुण युक्त और शिव शंकर जी- तमोगुण युक्त। वे 'त्रिदेव' कहलाते हैं और एक ब्रह्मांड में तीन लोकों यानी स्वर्ग-स्वर्गलोक, पृथ्वी-पृथ्वीलोक और पाताल-पाताल लोक में एक-एक विभाग के मंत्री के रूप में ज़िम्मेदारी रखते है। प्रकृति (दुर्गा) ने अपने तीन अन्य रूप (सावित्री, लक्ष्मी, और पार्वती) धारण किये और उनका अपने तीन पुत्रों से विवाह कर दिया। 'सावित्री के रूप में, भगवान ब्रम्हा जी को पत्नी दी गयी, भगवान विष्णु को लक्ष्मी रूप में और भगवान शंकर को पार्वती रूप में।
संदर्भ: - श्रीमद देवी भागवत महापुराण
अथ देवीभागवतं सभाषाटीकं समाहात्म्यम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाशन मुंबई; संस्कृत लेखन, हिंदी में अनुवादित
देवी दुर्गा ने ब्रह्मा जी से कहा- 'इस शक्ति को तुम अपनी पत्नी बनाओ। 'महासरस्वती' नाम से विख्यात यह सुंदरी अब सदा तुम्हारी पत्नी होकर रहेगी'।
भगवती जगदम्बा ने भगवान विष्णु से कहा - 'विष्णु! मन को मुग्ध करने वाली इस 'महालक्ष्मी' को लेकर अब तुम भी पधारो। यह सदा तुम्हारे वक्षःस्थल में विराजमान रहेगी'।
देवी ने कहा 'शंकर! मन को मुग्ध करने वाली यह 'महाकाली' गौरी- नाम से विख्यात है। तुम इसे पत्नी रूप में स्वीकार करो।
श्रीमद देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध 3, अध्याय 4, पृष्ठ संख्या 10, श्लोक 42
ब्रह्मा- अहम् ईश्वरः फिल ते प्रभावात्सर्वे व्यं जनि युता न यदा तू नित्याः, के अन्ये सुराः शतमख प्रमुखाः च नित्या नित्या तव्मेव जननी प्रकृतिः पुराणा (42)
'हे माता, ब्रह्मा, मैं (विष्णु), तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, हम नित्य/अविनाशी नहीं हैं, फिर अन्य इंद्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं। तुम्हीं अविनाशी हो, प्रकृति तथा सनातनी देवी हो।
श्रीमद देवी भागवत पुराण, पृष्ठ 11-12, अध्याय 5, श्लोक 8
यदि दयाद्रमना न सदाम्बिके कथमहं विहितश्च तमोगुणः कमलजश्च रजोगुणसम्भवः सुविहितः किमु सत्वगुणो हरिः (8)
भगवान शंकर बोले:- हे माता, यदि आप हमारे ऊपर सदा दयायुक्त हो तो आपने मुझे तमोगुण में किस प्रकार प्रधान किया, कमल से उतपन्न होने वाले ब्रह्मा को रजोगुण किस लिये बनाया तथा आपने विष्णु को सतगुण क्यों बनाया?" अर्थात आपने हमें जीवों/प्राणियों के जन्म और मृत्यु रूपी दुष्कर्म में क्यों संलग्न किया?
श्रीमद देवी भागवत पुराण तीसरा स्कंध, अध्याय 1-3, पृष्ठ संख्या 119 -120
भगवान विष्णु जी ने श्री ब्रह्मा जी और श्री शिव जी से कहा कि 'दुर्गा हम, तीनों की माता है। यही सर्व-जन की माता/जगतजन-नी, देवी जगदम्बिका/ प्रकृति देवी है। यह भगवती हम सभी की आदि कारण है।'
'यह वही दिव्यांगना है जिनके प्रलयर्नव में मुझे दर्शन हुए थे। उस समय मैं बालकरूप में था। वह मुझे पालने में झूला रही थी। वटवृक्ष पत्र/पत्ते पर एक सुदृढ़ शैय्या बिछी थी। उस पर लेटकर, मैं पैर के अंगूठे को अपने कमल जैसे मुख में चूस रहा था और खेल रहा था। यह देवी गाते हुए मुझे झूला रही थी। यह वही देवी है। इसमें कोई संदेह नहीं है। उन्हें देखकर, मुझे बीते हुए पल याद आ गए। यह हमारी माँ है।'
तीसरा स्कंध, अध्याय 5, पृष्ठ संख्या 123
श्री विष्णु जी ने श्री दुर्गा जी की स्तुति करते हुए कहा - 'तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भासित हो रहा है। मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर, हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं। हमारा जन्म (आविर्भाव) और मृत्यु (तिरोभाव) हुआ करता है; अर्थात, हम तीनो देवता नाशवान हैं। केवल तुम ही नित्य हो। तुम सनातनी देवी/जगतजन-नी/ प्रकृति देवी हो (प्राचीन काल से विद्यमान हो)।
भगवान शंकर बोले - 'देवी, यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट (उतपन्न) हुए हैं, तो उनके बाद उतपन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारे ही बालक हुए, और फिर मैं, तमोगुणी लीला करने वाला शंकर, क्या तुम्हारी सन्तान नही हुआ अर्थात मुझे भी उत्तपन्न करने वाली तुम ही हो। इस संसार की सृष्टि, स्थिति और संहार में तुम्हारे गुण सदा समर्थ हैं। उन्ही तीनों गुणों से उतपन्न हम, ब्रह्मा, विष्णु और शंकर, नियमानुसार कार्य मे तत्पर रहते हैं।
तीसरा स्कंध, अध्याय 6 पृष्ठ संख्या 129
दुर्गा ने ब्रह्मा से कहा, अब मेरा कार्य सिद्ध करने के लिए, विमान पर बैठकर तुम लोग शीघ्र पधारों। कोई कठिन कार्य उपस्थित होने पर जब तुम मुझे याद करोगे, मैं तुम, देवताओं के सामने आ जाऊंगी। मेरा(दुर्गा का) तथा ब्रम्ह का ध्यान तुम्हें सदा करते रहना चाहिए। हम दोनों का स्मरण करते रहोगे तो तुम्हारे कार्य सिद्ध होने में तनिक भी संदेह नही है।
संदर्भ श्री शिव पुराण- गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित, अनुवादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार।
पृष्ठ संख्या 100 -103- सदाशिव अर्थात काल-रूपी ब्रह्म और प्रकृति (दुर्गा) के मिलन(पति-पत्नी व्ययवहार) से सतगुण श्री विष्णु जी, रजगुण श्री ब्रह्मा जी, तथा तमगुण श्री शिव जी की उतपत्ति हुई। यह प्रकृति (दुर्गा), जिन्हें अष्टंगी कहा जाता है, को 'त्रिदेवजन-नी' तीन देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी) की माता कहते हैं।
पृष्ठ संख्या 110, अध्याय 9, रुद्र संहिता
"इस प्रकार, ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव, इन तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (ब्रह्म-काल) गुणातीत माने गए हैं।"
गीता अध्याय 14 श्लोक 3 से 5 में भी प्रमाण है। जहां गीता ज्ञानदाता यानी काल-ब्रह्म बताता है कि दुर्गा (प्रकृति देवी) मेरी पत्नी है। 'मैं उसके (दुर्गा) गर्भ में बीज स्थापना करता हूं, जिससे सभी प्राणियों की उतपत्ति होती है। मैं (ब्रह्म-काल) सभी का (इक्कीस ब्रह्मांड के जीवों/प्राणियों) पिता हूँ और प्रकृति (दुर्गा/अष्टंगी) सभी की माता कहलाती है।
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि दुर्गा (प्रकृति) और ब्रह्म (काल-सदाशिव) तीनो देवताओं के माता और पिता हैं। राजगुण-ब्रह्मा जी, सतगुण-विष्णु जी, और तमगुण शिव जी तीन गुण हैं। वे ब्रह्म (काल) और प्रकृति (दुर्गा) से उतपन्न हुए हैं और तीनों नाशवान हैं। वे मृत्युंजय (अजर-अमर/अविनाशी) या महादेव नहीं हैं। वे पूर्ण शक्तियुक्त नहीं हैं।
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